दुधारू पशुओं में थनैला रोग के लक्षण व उपचार
दुधारू पशुओं में थनैला रोग एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। थनैला से भारतवर्ष में लगभग 65 प्रतिशत भैंसे, गाये और बकरी पीड़ित है। जिसकी वजह से देशभर के दुग्ध उत्पादकों को कई हजार करोड़ रुपये का नुकसान होता है। यदि प्रारंभ में थनैला रोग की देखभाल उचित रूप से नहीं की जाती है, तो पशुओं के थन को सुखा देती है। इस रोग से पशु की जान जाती तो नहीं है, परंतु थन सूख कर पूर्ण रूप से बेकार हो जाते हैं।
थनैला रोग के लक्षण :
यदि थनैला रोग का समय पर उपचार न कराऐ तो थन की सामान्य सूजन बढ़ कर सख्त हो जाती है और थन लकड़ी की तरह कठोर हो जाता है। इस अवस्था के उपरांत थानों से दूध आना स्थाई रूप से बंद हो जाता है। सामान्यतः शुरुआत में एक या दो थन प्रभावित होते हैं, जिससे कि बाद में अन्य थनों में भी रोग फैल सकता है। कुछ पशुओं में दूध का स्वाद बदल कर नमकीन जैसा हो जाता है। अलाक्षणिक या उपलाक्षणिक प्रकार के थनैला रोग में थन व दूध बिल्कुल सामान्य प्रतीत होते हैं। लेकिन प्रयोगशाला में दूध की जाँच द्वारा रोग का निदान किया जा सकता है।
उपचार :
मैस्टीनिक्स पाउडर छ: कार्य प्रणाली के अनुसार काम करके थनैला की समस्या से पशु को छुटकारा दिलवाने में सहायक है। मैस्टीनिक्स पाउडर एंटीबायोटिक के साथ दे सकते है। मैस्टीनिक्स पाउडर पशु को 50 ग्राम प्रतिदिन की मात्रा में लगातार 4 से 5 दिन तक पशु को देना है।